Saturday, December 30, 2017

नववर्ष किसी के लिए खुशियाँ तो किसी के लिए लेकर आया दुःख?




राजपुरा: पंजाब में साल 2017 कांग्रेस के लिए खुशियाँ लेकर आया और अकाली-भाजपा के लिए दुःख। हल्का राजपुरा से स. हरदियाल सिंह कम्बोज दूसरी बार रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल करके विधायक बने। राजपुरावासियों के लिए ये ख़ुशी का माहौल बना, लेकिन इस साल की शुरुआत उस समय दुःख के साथ शुरू हुई जब भगवान ने राजपुरा वासियों से राज खुराना जैसे दिग्गज नेता को छीन लिया था। 

स. हरदियाल सिंह कम्बोज
विधायक, हल्का राजपुरा  
राजपुरा में इस समय विकास के चौके छक्के मारते स. कम्बोज दिन प्रतिदिन राजपुरवासियों के लिए कोई नया प्रोजेक्ट लाकर प्रतिदिन ही नए साल का उपहार देने में लगे है।  कई वर्षों से राजपुरा का एपी जैन सरकारी अस्पताल जो बदनामी की निगाह से देखा जाता था आज वोही अस्पताल किसी प्राइवेट अस्पताल से कम नहीं है, कुछ कमियां अभी भी है, लेकिन स. कम्बोज के वायदे मुताबिक उन कमियों को भी जल्द पूरा कर दिया जायेगा। सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं में घूसखोरी लगभग 50 प्रतिशत कम हो चुकी है। नगर कौंसिल द्वारा शहर का विकास कार्य जल्द ही शुरू करने का एलान भी किया जा चूका है। ये सब काम हल्का राजपुरा के विधायक स. हरदियाल सिंह कम्बोज की मेहनत का नतीजा है, जोकि राजपुरावासियों और कांग्रेस के लिए ख़ुशी की बात है, लेकिन सब विरोधी पार्टियों के लिए दुःख की बात भी है, क्योंकि पहले तो विरोधी पार्टियों के पास स. कम्बोज को टककर देने वाला कोई नेता है ही नहीं, उसके बाद पहले ही वर्ष स. कम्बोज द्वारा किये गए विकास कार्यों  से विरोधी पार्टियों में एक डर बन गया कि आने वाले समय में स. कम्बोज की जड़े राजपुरा के विकास से कहीं इतनी मजबूत ना हो जाये कि चुनावों में विरोधी पार्टियों को उनके खिलाफ कुछ कहने को भी ना मिले। जिसका एक उदहारण पटेल स्कूल द्वारा दिया गया है। ये विरोधी पार्टियों का एक जीता जागता सबूत है, स. कम्बोज द्वारा किये विकास के कार्यों का। विरोधी पार्टी कम्बोज के विकास कार्यों से इतना भयभीत हो गए कि उनको कम्बोज को बदनाम करने के लिए ऐसी नीतियों का सहारा लेना पड़ा, जब कम्बोज पर लगाए आरोपों का राजपुरवासियों ने विरोध किया तो एक दिन में ही अपने बयानों से पलटी मारनी पड़ी। अब इसको क्या समझा जाए, क्या ये राजपुरा के हीरों बनते कम्बोज साहिब की छवी को खराब करने की एक साजिश नहीं थी? अगर नहीं तो क्यों अकाली-भाजपा को अपनी ही कही बातों से यू टर्न लेना पड़ा। आप खुद ही समझदार है। 
इसीलिए 2017 कांग्रेस के लिए खुशियां और विरोधी पार्टियों के लिए दुख लेकर आया, बाकी  देखते है कि 2018 में क्या होता है?  

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